विरल धातुओं (Rare Metal) के अंतर्गत नायोबियम (Nb), टैंटलम (Ta), लिथियम (Li), बेरिलियम (Be), सीजीयम (Cs) आदि और विरल मृदा (Rare Earth) में लेंथानम (La) से ल्यूटेशियम (Lu) के अलावा स्कैंडियम (Sc) और इट्रियम (Y) आते हैं । ये धातुएं प्रकृति में सामरिक प्रकार के होते हैं और इनका व्यापक अनुप्रयोग नाभिकीय क्षेत्र एवं इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार, सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, रक्षा आदि जैसे उच्च तकनीक उद्योगों में किया जाता है । आर.एम.आर.ई ग्रुप पिछले छह दशकों से इन धातुओं के लिए अनुकूल भौगोलिक वातावरण में आधारभूत संसाधन उपलब्ध करने के लिए अन्वेषण कार्य कर रहा है। इन धातुओं के महत्वपूर्ण खनिजों में बेरिल (Be), लेपिडॉलाइट (Li), स्पोडुमीन (Li), एम्बिगोनाइट (Li), कोलम्बाइट- टैंटालाइट (Nb-Ta), पाइरोक्लोर (Nb) और जीनोटाइम (Y एवं REE) आते हैं।
भारत के नाभिकीय बिजली कार्यक्रम में यूरेनियम की महत्वपूर्ण भूमिका है । विभाग के त्रिचरणीय कार्यक्रम का प्रथम चरण दाबित भारी पानी रिएक्टरों (PHWRS),पर आधारित है, जिनमें ईंधन के रूप में प्राकृतिक यूरेनियम का उपयोग किया जाता है । द्वितीय चरण हेतु यह परिकल्पना की गयी है कि इसमें प्रथम चरण में उत्पादित प्लूटोनियम का उपयोग किया जाएगा । तीसरा चरण थोरियम -ईंधन पर आधारित है । अतएव उपरोक्त कार्यक्रम को कार्यान्वित करने हेतु प.ख.नि यूरेनियम के अलावा थोरियम, तथा अन्य नाभिकीय कच्ची सामग्री यथा जिरकोनियम, बेरियम, लिथियम के संसाधनों को ढूँढने एवं मूल्यांकित करने के कार्य में संलग्न है । इल्मेनाइट रूटाइल (टाइटानियम खनिज), जिरकॉन (जिरकॉनियम खनिज), मोनाजाइट (थोरेयम एवं REE खनिज ) जैसे यह खनिज, गार्नेट एवं सिलिमेनाइट के साथ, देश के पूर्वी एवं पश्चिमी समुद्र-तटीय मैदानों, एवं तमिलनाडु, बिहार एवं पश्चिम बंगाल के कुछ अन्तःस्थलीय प्लेसरों (Inland placers) में बहुतायत से पाए जाते हैं। इन खनिजों में से इल्मेनाइट, रुटाइल, जिरकाँन एवं मोनाजाइट को परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962 के अन्तर्गत विहित पदार्थो के वर्ग में रखा गया है । प.ख.नि को इन खनिज - संसाधनों के अन्वेषण एवं मूल्यांकन का अधिदेश (Mandate) दिया गया है। देश के लगभग 6000 कि. मी. की तटवर्ती लम्बाई के एक तिहाई हिस्से का सर्वेक्षण कर लिया गया है, तथा इन खनिजों की कई टन मात्रा को सुस्थापित कर दिया गया है।
वायुवाहित सर्वेक्षण एवं सुदूर संवेदन वर्ग यूरेनियम खनिजीकरण हेतु अन्वेषण एवं आगामी सर्वेक्षण हेतु लक्षित क्षेत्रों को ढूंडने तथा वायुवाहित (फिक्सड विंग / हेलीकाप्टर) भूभौतिकीय सर्वेक्षण आंकड़ा अर्जित करने उसे संसाधित, परिभाषित, समाकलन एवं मॉडलिंग करने हेतु उत्तरदायी है । प.ख.नि ने 1955 में स्वदेश में विकसित और डिजाइन की गई गामा रे टोटल काऊंट सिस्टम के साथ वायुवाहित सर्वेक्षण आरंभ किया था । 1972 में (50 लीटर) विस्तृत मात्रा NaI(Tl) डिक्टेटर के साथ उच्च संवेदनशीलता वायुवाहित गामा के स्पेक्ट्रोमीटर (AGRS) और प्रोटोन प्रिसेशन मैग्नेटोमीटर, विकसित कर सर्वेक्षण हेतु परिनियोजित किया गया । वर्ष 1997 से 2002 के दौरान सी एस-वैपोर मैग्नेटोमीटर एवं ग्लोबल पोजिशनिंग प्रणाली के साथ AGRS ने व्यापक सर्वेक्षण किया। फिक्स्ड विंग प्लेटफार्म का प्रयोग करते इस प्रणाली से कुल 5 लाख लाइन कि.मी. के आंकडे किये गये ।
अन्वेषण भू-भौतिकी वर्ग यूरेनियम निक्षेपों जो गहराई में मिलते है की जांच के लिए मुख्य रूप से आधुनिक यूरेनियम अन्वेषण प्रोग्राम में कार्यरत हैं । यह संगठन के बहु-आयामी यूरेनियम अन्वेषण कार्यक्रम का अभिन्न अंग है। भूभौतिकीय तकनीकों का उपयोग विशेष रूप से उप सतही भूविज्ञान को समझने, उपसतह संरचनाओं को चित्रण करने, परिवर्तन जोन का पता लगाने और धात्विक खनिजों का संघटन और अयस्क स्थानीयकरण पर सल्फाइड, ग्रेफाइट एवं कर्बोनेसियम का असर देखने में किया जाता है। झाखण्ड के सिंहभूम शीयर जोन (एस.एस.जेड.); अरावली और दिल्ली के फोल्ड बेल्ट - रोहिल-घाटेश्वर और मवाता-जहाज क्षेत्र, सीकर जिला, राजस्थान; उमरा क्षेत्र, उदयपुर जिला, राजस्थान; आर्बेल क्षेत्र, उत्तर कानारा जिला, कर्नाटक; और भीमा बेसिन, गुलबर्गा जिले, कर्नाटक के कुछ हिस्सों में यूरेनियम खनिज की निरंतरता स्थापित करने में भू-भौतिक सर्वेक्षण का प्रभावी ढंग से उपयोग किया गया है।
ड्रिलिंग किसी भी अन्वेषण गतिविधि का मुख्य निष्पादन सूचक है। प.ख.नि में, ड्रिलिंग गतिविधियों को विभागीय और ठेका ड्रिलिंग समूहों द्वारा समन्वित किया जाता है। यूरेनियम संसाधन संवर्धन के लिए देश के विभिन्न भागों में कुल 2,189 .80 कि.मी. की विभागीय ड्रिलिंगऔर 1,058.84 कि.मी. की ठेकापर ड्रिलिंग (मई 2017 तक) कार्य पूर्ण किए गए ।