Print Icon दक्षिणी क्षेत्र
क्षेत्र : 3,96,000 वर्ग कि.मी.
राज्य : आँध्र प्रदेश (15 o उ अक्षांस का दक्षिण), कर्नाटक एवं महाराष्ट्र (17o उ-अक्षांस का दक्षिण), गोवा, केरल, तमिलनाडु एवं पांडिच्चेरी.
मुख्यालय : बेंगलूर
पता : क्षेत्रीय अन्वेषण एवं अनुसंधान केद्र, नागरभावी, बेंगलूर-560 072.
संपर्क सूत्र : एस के वर्गोस, क्षेत्रीय निदेशक
फोन      :    080-23210246
फैक्स    :    080-23211511
ई- मेल  :    rdsr.amd@gov.in

इस क्षेत्र की स्थाना सन् 1956 में पटान भवन, बेंगलूर में एक किराए पर लिए गए भवन में की गई । सन् 1986 में पखनि के स्वयं के कार्यालय/प्रयोगशाला भवन तथा आवासीय क्वार्टर्स नागरभावी, बेंगलूर में बनाए गए। 

(i)   आर्कियन आधार शैल (>2500 Ma): तमिलनाडु, केरल, आँध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा गोवा में आधार शैल आर्कियन कणिकाश्म संलक्षणियों (archean granulite facies) से निर्मित हुए हैं जिनमें स्फटिकाश्म, गार्नेट सिलिमिनाइट, नाइस, मार्बल, कैल्सीफाइर्स, एम्फीबोलाइट तथा चार्नोकाइट शामिल हैं ।  इन राज्यों में प्रायद्वीपीय नाइस जिनमें, मिग्माटाइट  तथा भूरे रंग के ग्रेनाइट पट्टियाँ प्रमुख है, बड़े। इलाकों में क्रमानुपात में दिखाई पड़ती हैं ।

(ii)   पश्च आर्कियन धारवाड़ सुपरग्रुप शैलः ये ज्वालामुखी अवसादों की क्रमिक पुंजियों से निर्मित हैं और इनका वर्गीकरण मोटे तौर पर बाबाबूदन समूह तथा ऊपरी चित्रदुर्ग समूह के रूप में किया जा सकता है । बाबाबूदन समूह में स्फटिक गुटिका संगुटिकाश्मों (quartz pebble conglomerates) के साथ ऊँचे समतलीय अवसादों, गुटिकात्मक स्फटिक व फुक्साइट स्फटिक तथा पट्टित मैग्नेटाइटी स्फटिक, बाद में भू-पृष्ठीय मैफिक ज्वालामुखी शैल दिखाई पड़ते हैं। जबकि चित्रदुर्ग समूह गौण ज्वालामुखी शैलों के साथ भू-अभिनतिक अवसादों (geosynclinal sediments) तथा सुविकसित चूनापत्थरों, मैंगनीज़ तथा सहयोजित लौह तात्विक शैल समूहों के रैखिक प्रदेशों की उपस्थिति से पहचाना जाता है। ये अधिकांशतः कर्नाटक तथा आँध्र प्रदेश के कुछ भागों में पाए जाते हैं ।

(iii)  निचले आर्कियन प्रोटेरोजाइक क्लोसपेट ग्रेनाइटः इस युग के ग्रेनाइट 50 कि मी चौड़ाई वाली संकीर्ण पट्टी के रूप में उत्तर-दक्षिण दिशा में फैले हुए हैं ।  तरुण पोटासिक ग्रेनाइट की इस पट्टी के कारण आर्कियन युग के दो पृथक भू-पर्पटी खंडों को अलग करने वाली एक बड़ी भू-सीवनी (major geosuture) का निर्माण होना माना जाता है ।  पश्चिमी खंड की यह विशेषता है कि इसमें आयरन-मैंगनीज़ अयस्कों की निम्न ग्रेड की कई विकसित ग्रेनाइट ग्रीन स्टोन पट्टियाँ हैं ।  जबकि पूर्वी खंड में मुख्य रूप से ग्रेनाइटी तथा ग्रैनोडियोराइटिक संयोजन वाले तरुण नाइसों, जो कई स्थानों पर स्वर्णमय शिष्ट बेल्टों की संकीर्ण रैखिक पट्टियाँ अपने बीचों-बीच समाहित किए हुए हैं, से निर्मित हुआ है ।

(iv) मध्य से लेकर उपरी प्रोटेरोजोइक कड़प्पा सुपरग्रुप तथा उनके समकक्ष शैल जैसे भीमा ग्रुप तथा कलाडगी शैल समूहः ये भारतीय भूविज्ञान के अत्यंत महत्वपूर्ण प्रदेश हैं ।  कड़प्पा बेसिन 12 कि.मी. अवसादी मोटाई तथा सिलों तथा भित्तियों के रूप में ज्वालामुखीय शैल श्रृंखला से निर्मित है जो सुस्पष्ट एपार्कियन विषमविन्यास वाले आर्कियन प्रायद्वीपीय नाइस सम्मिश्र के ऊपर शयनित है ।  इस बेसिन में कड़प्पा सुपरग्रुप के शैल हैं जिसमें कर्नूल ग्रुप भी शामिल है ।

कलादगी तथा भीमा बेसिन उत्तरी भाग में स्थित हैं और दख्ख़न ट्रैपों के नीचे विस्तारित हैं ।  इन बेसिनों के शैल क्लैस्टिक/केमोजनिक मूल के हैं ।

(v)  मध्यजीवी-तृतीयक युग के दख्ख़नी ट्रैपः ये शैल समूह क्षेत्र के कुछ सीमित बहुत ही छोटे भागों में फैले हुए हैं और धारवाडय क्रेटॉन के उत्तरी विस्तारों के ऊपर आच्छादित हैं ।

(vi) तरुण द्रोणियाँ [मध्यजीवी-तृतीयक (मेसोजोइक-टर्शरी)]:  इन अवसादों में पालर बेसिन के गोंडवाना शैल, तिरुचिनापल्ली के क्रिटेशियस शैल, कड्डालौर बलुआपत्थर, वारकाला संस्तर, क्विलोन संस्तर शामिल हैं ।

(vii) पुलिन एवं अंतर भूभागी प्लेसरः ये चतुर्थ महाकल्प समूह (क्वाटेर्नरी ग्रुप) के शैलों के अंतर्गत आते हैं ।  तमिलनाडु तथा केरल के पुलिन एवं अंतर्भूभागीय प्लेसरों में इल्मेनाइट, मोनाजाइट, रूटाइल, गर्नेट, जिरकॉन तथा सिलिमानाइट के कुछ मूल्यवान निक्षेपों में से हैं ।

रेडियोमित्तीय सर्वेक्षणों का मुख्य भाग पश्च आर्कियन धारवाड़ में पैलियो प्लेसर क्यू.पी.सी. प्रकार के तथा प्रोटेरोजाइक बेसिनों में अन्य प्रकार के निक्षेपों की ओर लक्ष्यित है ।  अन्वेषण अवधि के दौरान यूरेनियम खनिज निक्षेपों के कुछ चिह्नित स्थान इस प्रकार हैं :

वालकुंजी : यह कर्नाटक के दक्षिण कनडा जिले में मंगलूर के उत्तर-पूर्वी दिशा में स्थित है यहाँ के आतिथेय शैल, समाश्म स्फटिक गुटिका संगुटिकाश्म (oligomictic quartz pebble conglomerates) हैं जो आर्कियन प्रायद्वीपीय नाइसों के ऊपर शयनित हैं ।  यह एक पैलियो प्लेसर क्यू.पी.सी. प्रकार का यूरेनियम खनिजीकरण है जो 200 मी तक की गहराई में 2500 मी नतिलंब लंबाई  क्षेत्र में खंडित रूप में विद्यमान है ।  यहाँ के चिह्नित रेडियोमित्तीय खनिजों में यूरेनिराइट, ब्रान्नेराइट तथा पिचब्लैंड शामिल हैं ।

अरबेल : यह कर्नाटक के उत्तरी कनडा जिले में कारवाड़-हुबली सड़क पर कारवाड़ के पूर्व में 53 कि.मी. दूरी पर स्थित है ।  आर्कियन ग्रेनाइटों पर शयनित स्फटिक एरीनाइट यहाँ के आतिथेय शैल हैं ।  यह भी एक पैलियो प्लेसर यूरेनियम निक्षेप है परंतु वालकुंजी के क्यू.पी.सी. प्रकार के निक्षेप की तुलना में इसकी संस्तर-स्थिति युवावस्था में है और यह 7 कि.मी. के नतिलंब लंबाई के क्षेत्र में 250 मी. ऊर्ध्वाधर गहराई के अंदर विद्यमान है ।  यहाँ पाए गए रेडियोएक्टिव खनिजों में यूरेनिनाइट, यूरानोथ्रोराइट, ब्रान्नेराइट और थुकोलाइट शामिल हैं । खनिजीकृत क्षेत्र में स्वर्ण की उपस्थिति भी 15 पी.पी.एम. मात्रा तक अंकित की गई है। परंतु, ये उपस्थितियाँ आर्थिक दृष्टि से व्यवहार्य नहीं है । 

तुम्मलपल्ले-राचकुंटपल्ले यह आँध्रप्रदेश के कड़प्पा जिले में पुलिवेंदुला के दक्षिण में 12 कि.मी. दूरी पर स्थित है ।  यहाँ के आतिथेय शैल हैं - फ़ॉस्फेटी, कडयप्पा सूपरग्रुप के वेमपल्ले शैलसमूह के सिलिकामय डोलोस्टोन है जो आर्कियन ग्रेनाइट पर शयनित है ।  यह कार्बोनेट शैलों में अवस्थित एक विशेष प्रकार का संस्तर-बद्ध निक्षेप है और यह 6600 मी नतिलंब लंबाई व 275 मी ऊर्ध्वाधर गहराई क्षेत्र में उपलब्ध है ।

गोगी : यह कर्नाटक के गुलबर्गा जिले में स्थित है ।  यहाँ के आतिथेय शैल भीमा ग्रुप के विरूपित चूना पत्थर तथा बेसमेंट ग्रेनाइट हैं ।  यह संरचनात्मकतः नियंत्रित शिरा प्रकार का निक्षेप है और 2000 मी नतिलंब लंबाई तथा 180 मी तक की ऊर्ध्वाधर गहराई  वाले क्षेत्र में उपलब्ध है । इस क्षेत्र में अन्वेषण कार्य प्रगति पर है ।
उपरोक्त के अलावा आँध्र प्रदेश के कड़प्पा जिले में मूलपल्ले, सानिपाया-टी. सुन्दापल्ले, मादीरेड्डीगारीपल्ले मेंआधारीय शैलों में विभंगों के साथ में यूरेनियम की कई उपस्थितियाँ पाई गईं ।  यूरेनियम के अतिरिक्त, क्षारीय शैलों के साथ विरल धातुओं की उपस्थितियों का भी तमिलनाडु के सेलम जिले में सेवात्तुर, पक्कनाडु, कुल्लमपट्टी, नार्लपल्ली, पुंगुर्ती में पता लगाया गया ।  मांडय़ा जिले के मार्लगल्ला तथा अरेहल्ली, मुन्दूर में Nb-Ta के काफी मात्रा वाले सांद्रण पाए गए, जहाँ पर कोलंबाइट-टैंटालाइट की प्राप्ति संबंधी रिकवरी कार्य पूरे कर लिए गए हैं ।

अन्वेषण के वर्तमान मुख्य लक्ष्य-क्षेत्र
यूरेनियम अन्वेषण के लिए वर्तमान में आधारीय शैलों के साथ प्रोटेरोजोइक विषमविन्यासों पर जोर दिया जा रहा हैं ।  तदनुसार ही तीन द्रोणियाँ यथा, कर्नाटक में कलाडगी-बादामी व भीमा बेसिन तथा आँध्र प्रदेश के कडयप्पा बेसिन सक्रिय अन्वेषणाधीन हैं ।

इस क्षेत्र में विभिन्न प्रयोगशालाएँ हैं जो अनेक सुविधाओं से सुसज्जित है जैसा कि :