क्षेत्रफल |
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6, 06, 000 वर्ग कि.मी. |
राज्य |
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उत्तर प्रदेश, उत्तराँचल, हिमाचल प्रदेश, जम्मू व काश्मीर, हरियाणा, पंजाब तथा मध्य प्रदेश के भाग |
मुख्यालय |
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नई दिल्ली |
पता |
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क्षेत्रीय अन्वेषण एवं अनुसंधान केन्द्र, पखनि परिसर, पश्चिमी खंड VII, आर.के.पुरम, नई दिल्ली-110 066. |
संपर्क सूत्र |
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डॉ जयदीप सेन, क्षेत्रीय निदेशक
फोन : 011-26101450
फैक्स : 011-26107358
ई- मेल : rdnr.amd@gov.in |
नई दिल्ली कार्यालय, 1949 के दौरान प.ख.नि.मुख्यालय के रूप में स्थापित किया गया था, किन्तु 1974 में इसे हैदराबाद स्थानांतरित किया गया तथा नई दिल्ली कार्यालय, उत्तरी क्षेत्र के मुख्यालय के तौर पर बना रहा । राजस्थान शुरुआत में उत्तरी क्षेत्र का भाग था, किन्तु 1988 के दौरान पश्चिमोत्तर क्षेत्र (जो अब पश्चिम क्षेत्र है ) के रूप में एक अलग क्षेत्र बनाने के लिए इसे नया दर्जा दिया गया ।
उत्तरी क्षेत्र में बृहत् हिमालय के वे पर्वतीय इलाके शामिल हैं जहाँ ऊपरी तथा निचले हिमालय के क्षेत्र में विभिन्न कालों के आग्नेय तथा मेटाअवसाद शैल पाए गये हैं, पार-हिमालय अवसादें, सिवालिक अवसादें, गंगा के बड़े जलोढ़ क्षेत्र तथा आर्कियन ग्रैनिटॉइड व दक्षिण में प्रोटेरोज़ॉइक अवसाद भी पाए गए हैं ।
ऊपरी हिमालयः ग्रेनाइट नाइस तथा उच्च ग्रेड मेटामॉर्फिक शैल, जो सेण्ट्रल क्रिस्टालिन धूरी के रूप में भी जाने जाते हैं, से मिलकर बना है । दक्षिण की ओर का मेन सेण्ट्रल थ्रस्ट (MCT) का पूरा क्षेत्र, निचले हिमालय क्षेत्र जो अंतर्वेधी ग्रेनाइट से युक्त या बिना अंतर्वेधी ग्रेनाइट के सुपरिचित नापे व क्लिपे सहित मेटाअवसाद तथा मेटाबेसिक शैल को दर्शाते हैं । मेन बाउण्डरी थ्रस्ट (MBT), निचले हिमालय शैलों को सिवालिक बेल्ट से पृथक करता है ।
सिवालिक बेल्टः जम्मू व काश्मीर से लेकर हिमाचल प्रदेश से आगे उत्तराँचल तक फैली हुई यह पट्टी इस क्षेत्र की एक प्रमुख भूवैज्ञानिक लक्षण है । सिवालिक अवसादों को निचला सिवालिक (मुख्यतः मृण्मय), मध्य (आन्तरिक शैली परतों सहित बालुकामय), तथा ऊपरी सिवालिक (बलुई लेंसेस युक्त संगुटिकाश्म) के रूप में तीन भागों में बाँटा गया है ।
दक्षिण की ओर का हिमालयन फ्रण्टल फॉल्ट ( एच.एफ.एफ.) सिवालिक को इंडो-गैं जेटिक प्लेन्स से अलग करता है ।
इंडो-गैं जेटिक प्लेन के दक्षिण की ओर से आगे प्रोटेरोज़ॉइक बीजावर-ग्वालियर-विंध्याचल समूह के शैल बेसमेण्ट के रूप में बुन्देलखंड ग्रैनिटिक कॉम्पलेक्स पर फैले हुए हैं । विंध्याचल बेसिन की दक्षिणी सीमा महाकौशल समूह तथा छोटानागपुर ग्रैनाइट नाइस से घिरी हुई है ।
यद्यपि अब तक यहाँ आर्थिक रूप से उपयोगी डिपॉज़िट नहीं पाया गया है फिर भी उत्तरी क्षेत्र के लगभग सभी भूवैज्ञानिक प्रभावी भागों में बड़ी मात्रा में महत्वपूर्ण यूरेनियम उपस्थितियों (ऑकरेन्सेस) की खोज की गई है ।
हिमाचल प्रदेश के ऊपरी-मध्य सिवालिक संक्रमण क्षेत्रों, हरियाणा, उत्तराँचल तथा जम्मू व कश्मीर में मसूराकार वृक्क पिंड (लेन्टिक्यूलर यूरेनिफिरस बॉडीज़), बालुकाश्म तथा संगुटिकाश्म दोनों में बहुत बड़े क्षेत्रों में पाए गए हैं । सौ मीटर तक के विस्तार वाले लेन्स अल्प औसतन ग्रेड (लो एवरेज ग्रेड) में पाए गए हैं । बड़ी संख्या में इन ब्लॉकों की ड्रिलिंग की गई है तथा हमीरपुर जिला, हिमाचल प्रदेश में तीन ब्लॉकों अस्तोटा, ख्या व अंडलाडा अन्वेषणात्मक खनन कार्य (एक्सप्लोरेटरी माइनिंग) भी शुरू किया गया था, अब तक राजपुरा का क्षेत्र, अल्प निचय (लो रिज़र्व) के साथ इन उपस्थितियों (ऑकरेन्सेस) के लिए सर्वोत्तम स्थान के रूप में जाना जाता रहा है । इसी प्रकार की अन्य उपस्थितियाँ ( ऑकरेन्सेस) उत्तराँचल के धानौर तथा नौगाजिया राव-शाकम्बरी राव, जम्मू व काश्मीर के मालेर तथा थेइन और हरियाणा के मोरनी में पाए जाते हैं ।
पूर्व-सिवालिक संक्रमण अवसादों में भी हिमाचल प्रदेश के सोलन व मंडी जिलों में धर्मशाला समूह में बड़ी संख्या में असंगतियाँ पाई गई हैं । अब तक जिन क्षेत्रों का पता लगाया गया है उन में से तिलेली सबसे बड़ा उपस्थिति (ऑकरेन्स) क्षेत्र है । तिलेली में यूरेनियम खनिजीकरण के लिए, जो लिथिक एरिनाइट्स सहित निचले व ऊपरी धर्मशाला फॉर्मेशन्स के कॉन्टैक्ट में है, 500मी. X 10मी. विस्तार लंबाई तक के स्थान का निर्धारण किया गया है जिसे अन्वेषणात्मक खनन कार्य (एक्सप्लोरेटरी माइनिंग) द्वारा 300 मी. की गहराई तक ऊर्ध्वाधर रेख (सेधे) अनुरेखित किया गया है । आगे की ड्रिलिंग तीखी चढ़ाई वाली स्टीप टोपोग्राफी तथा असमतल भूभाग होने के कारण रोक दी गई है ।
ऊपरी हिमालय के नाइसिक शैलों में द्वितीयक खनिजों का बड़ी मात्रा में विकास नज़र आता है, उदाहरण के लिए हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में चौरा, जहाँ फ्रैक्चर नाइसिक से युक्त महत्वपूर्ण यूरेनियम खनिजीकरण तथा रामपुर ग्रुप के क्वार्टज़ाइट को निचले हिमालय के पूरे मेन सेण्ट्रल थ्रस्ट (MCT) में, कई स्थानों में खोजा गया है, जो कि हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में काशा, कंडी व कलड़ी महत्वपूर्ण स्थल हैं । यह खनिजीकरण जिनमें से छोटी शिरिकाओं के विभंजन किनारों के रूप में उपस्थित है । छोटे पैमाने पर खनन (माइनिंग) तथा हीप लीचिंग करते हुए कंडी क्षेत्र की यूरेनिनाइट शिरिकाओं(वेनलेट्स) से पीला केक प्राप्त हुआ है ।
इसी तरह की यूरेनियम उपस्थितियाँ (ऑकरेन्सेस) उत्तराँचल के बेरिनाग क्वार्ट्ज़ाइट में भी प्राप्त की गई हैं । अपरूपण (फ्रैक्चर्स) नियंत्रित महत्वपूर्ण आयामों व ग्रेड के यूरेनियम खनिजीकरण चमोली जिले के पोखरी क्षेत्र में क्लोराइट-सेसिसाइट शिस्ट में सहयोजित रूप में, तथा उत्तराँचल के टेहरी जिले के ब्रिजरानीगढ़ क्षेत्र में ग्रेनाइट नाइसी में सहयोजित अवस्था में प्राप्त किए गए हैं । हिमालय में अन्वेषण कार्य भूविज्ञानी रुकावटों तथा ढाँचागत सुविधाओं की कमी के कारण बड़े पैमाने पर बाधित हुआ है ।
भारत के प्रायःद्वीपीय भागों में, उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में कई जगहों पर जैसे नक्टु, कुदर, नवतोलधनबदुआ इत्यादि क्षेत्रों में, कैटाक्लास्टिक ब्रेशिया व मिग्माटाइट्स में यूरेनियम खनिजीकरण देखा गया था । यह क्षेत्र छोटानागपुर ग्रेनाइट नाइस कॉम्पलेक्स का एक भाग है । इन क्षेत्रों में अन्वेषणात्मक ड्रिलिंग कार्य (एक्सप्लोरेटरी ड्रिलिंग) शुरू किया गया था किन्तु निम्न ग्रेड व समुचित खनिज मात्रा के अभाव में रोक देना पड़ा।
यूरेनियम खनिजीकरण उत्तर प्रदेश में ललितपुर जिले के सोनराई के आस-पास क्षेत्रों में बीजावर समूह के क्लोरिटिक शेल में फ्रैक्चर-फिल्ड बिटुमेन, बन्दाई बालुकाश्म (सैंड्स्टोन) तथा रोहिणी कार्बोनेट में सहयोजित (एसोशिएटेड) रूप में भी पाया गया है । अन्वेषणात्मक ड्रिलिंग कार्य (एक्सप्लोरेटरी ड्रिलिंग) से यह संकेत मिलते हैं कि यह खनिजीकरण सह-संबंधित (केरिलेटेबुल) नहीं है ।
मुख्यतः प्रोटेरोज़ॉइक विषमविन्यास (अन्कन्फर्मिटी) टाइप के डिपॉज़िटों का पता लगाने के लिए मध्य प्रदेश के ग्वालियर-बीजावर तथा विंध्याचल बेसिनों के क्षेत्रों में तथा साथ ही साथ बालुकाश्म टाइप के डिपॉज़िटों का पता लगाने के लिए हिमाचल प्रदेश के भागों में सिवालिक तथा अग्र-सिवालिक क्षेत्रों में वर्तमान अन्वेषण केंद्रित है । हरियाणा के कुछ भागों में, राजस्थान से आल्बिटाइट की उत्तरीय कन्टय़ूनिटी की खोज करने तथा भूवैज्ञानिक सेटिंग का पता लगाने के लिए स्तरण (स्ट्राटिग्राफिक) ड्रिलिंग का कार्य प्रगति पर है जहाँ रोहिल क्षेत्र के एल्बिटाइटी मेटाअवसादों में महत्वपूर्ण यूरेनियम खनिजीकरण स्थापित किए गए हैं ।
यह क्षेत्र निम्नलिखित सुविधाओं से सुसज्जित है ।